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अगला यथार्थ

हिमांशु जोशी

प्रकाशक : पेंग्इन बुक्स प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :258
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7147
आईएसबीएन :0-14-306194-1

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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...

पाषाण-गाथा



नदी पार करने के पश्चात हल्की-सी चढ़ाई थी और उसके बाद यह दूसरी दुनिया। घने वनों के बीच बिछी हरी चादरें। ओर-छोर का कहीं पता ही नहीं चल पाता।

अभी गर्मी आरंभ नहीं हुई थी, फिर भी गेहूं के बित्ते-भर ऊंचे पौधे हवा में लहलहा रहे थे। किसी ने बतलाया-ये नई किस्म के पौधे हैं, इससे ऊंचे नहीं जाते। जितना लंबा डंठल है, उतनी ही लंबी बाल भी लगती है।

उस पार आसमान की ओर उभरी एक नीली, धुंधली रेखा साफ दिखलाई दे रही थी-पर्वतों की माला।

सामने कतार में झोंपड़ीनुमा कच्चे घर थे-घास-फूस के। अब याद नहीं, उनकी छतें टीन की चादरों से ढकी थीं या घास-पुआल से। इतने लंबे वक्फे में तो बहुत-सी बातें यों ही धुंधला जाती हैं।

हां, जब हम वहां पहुंचे तो अजीब-सा लग रहा था। एक ऊंचा-सा काला शेड दाहिनी तरफ खड़ा था-वर्कशाप जैसा। काले कपड़े पहने कुछ मज़दूर काम में जुटे थे। कहीं भट्टी में गर्म लोहा तप रहा था। घन की भरपूर चोट से तपते लोहे को निश्चित आकार दिया जा रहा था। कुछ मज़दूर लोहे के भारी शहतीर को उठाने का असफल प्रयास कर रहे थे। वहां शोरगुल कुछ अधिक था।

धुएं के साथ-साथ धूल थी। उड़ती हुई रेत इतनी अधिक कि देर तक ठहर पाना कठिन लग रहा था।

तभी सामने अधेड़ उम्र का एक आदमी आया। उसकी घनी मूंछे डरावनी लग रही थीं। भौंह के काले बाल गुच्छे की तरह गुथे हुए।

‘फारम का काम करने वाला अउजार हम अपनेई ठीक कै लेइत हैं।" उसने कहा।

"कब से हैं यहां?" मैंने पूछा। तिन साल एहि चैत मा पूरा होई जाई।”

"रहने वाले कहां के हैं?"

"सुल्तानपुर कै।”

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    अनुक्रम

  1. कथा से कथा-यात्रा तक
  2. आयतें
  3. इस यात्रा में
  4. एक बार फिर
  5. सजा
  6. अगला यथार्थ
  7. अक्षांश
  8. आश्रय
  9. जो घटित हुआ
  10. पाषाण-गाथा
  11. इस बार बर्फ गिरा तो
  12. जलते हुए डैने
  13. एक सार्थक सच
  14. कुत्ता
  15. हत्यारे
  16. तपस्या
  17. स्मृतियाँ
  18. कांछा
  19. सागर तट के शहर

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